Saturday, June 20, 2020

Nepotism:

Nepotism:

पिछले कई वर्षो, कई दिनों से बार बार एक सवाल सामने आ रहा है..... आखिर ये है क्या?

और क्यों ये हमें इतना विचलित कर रखा है ?

क्या ऐसा पहली बार हुआ है?

क्या इसके पहले सब कुछ ठीक था?

इन सब सवालो ने कहीं न कहीं हम मध्यम वर्ग को ज्यादा प्रभावित किया है.. आखिर ऐसा क्यों?

ऐसा क्यों होता है की हमारे आस पास चल रहे किसी भी अव्यवस्था से हम सहज ही प्रभावित हो जाते हैं.... और इतना प्रभावित की हम खुद को खत्म कर उस चल रहे अव्यवस्था के लिए एक ऊर्जा देते जाते हैं .

हमारा सोचना बिलकुल गलत नहीं है...गलत है की हम किसी से भी कुछ ज्यादा आशन्वित होते हैं और खुद की अपेक्षा बढ़ाये रखते हैं जिसके पूरा न हो पाने का दंड भी खुद को ही देते चले जाते हैं...जो बिलकुल तर्कहीन और गलत है

हमारा सबसे बड़ा दोस्त हमारा आत्मविश्वास होता है, क्यों नहीं हम इसे मजबूत करने का प्रयास करते हैं.... यहाँ सायद मई गलत हो सकता हु लेकिन क्या हमारे पास कोई और भी विकल्प है क्या?

जिस भाई भतीजावाद की बात चल रही है उससे तो ऐसा कोई सेक्टर नहीं जो प्रभावित नहीं... तब क्या हमें अपने लड़ाई, आत्मविश्वास को छोड़ अंतिम यात्रा को निकल चलना चाहिए... बिलकुल नहीं... मैं सहमत नहीं... हमें तो अपना रास्ता खुद बनाना है...काम से काम ये तो होगा की हमने खुद के लिए प्रयास तो किया... आत्मसंतुष्टि तो होगी.

हम बॉलीवुड की ही क्यूँ...किसी और की क्यूँ न बात करे... आज जहां से मैं देखता हूँ वहां से भाई भतीजावाद से प्रभावित अगर कोई है तो वह है हमारी राजनीति, न्यायपालिका, मीडिया, ब्यूरोक्रेसी आदि

और यह ऐसी व्यवस्था बन गई है जिसके साथ ही जीने को हम अभिशप्त हैं, हम जानते हैं की हम न इसके खिलाफ लड़ सकते हैं और न इससे पार पा सकते हैं, तो बेहतर यह होगा की हम इसे एक चैलेंज के रूप में ले और अपने लिए खुद रस्ता बनाये जो हमें हमारी मंजिल तक पहुँचायेगा।

हम माध्यम वर्ग _ जो बहुत ही कर्मशील है _ जिसे ये पता है की वो हर परिस्थिति से लड़कर पार प् सकता है क्यों न अपनी लड़ाई खुद लड़े और ये याद रखे की वो कौन है_कहाँ से आया है_उसे कहाँ जाना है.

शायद यही एक रास्ता है जो हमे अख्तियार करना होगा मंजिल पर पहुंचने के लिए अन्यथा फिर हम किसी अव्यवस्था का शिकार होने के लिए खुद को प्रस्तुत कर रहे होंगे...


Tuesday, April 9, 2019

कल्पना एक स्वस्थ लोकतंत्र की

राजनीति और सत्ता दोनों की ही परिभाषा बदलती दिख रही है इस लोकतंत्र के महापर्व में!
दुखद तो है इस सारे को सुचारु रूप से चलाये जाने वाले विभाग की कहानी
EC जो पुरे महापर्व को आयोजित करता है वही संवेदनहीनता और संवादहीनता के साथ खुद को भी कही न कही पर्यवेक्षक से इतर एक पार्टी के रूप में स्थापित करने को आतुर है, ये जानते हुए की बाद में उसे सफलता में वही मिलेगा जितना की आज तक से पहले वाले को मिलता आया है.
आज के इस महापर्व में वो सारे मुद्दे गायब हैं जिनकी जरुरत हमारे नौजवान हिंदुस्तानी को है, उन्ही मुद्दों पर बात चल रही है जो की विभाजनकारी हो सकती हो।
सबसे बड़ी बात की हम युवा भी खुद की बात और भविष्य के सारे सम्भावनाओ को दरकिनार कर उसी के पीछे भाग रहे हैं जिसका कोई अंत नहीं और है तो अतयंत ही भयावह और विद्रूप।
मेरा मानना है की कम से कम हम उस मुद्दे पर तो बात कर ही सकते हैं जिसपर हमारा भविष्य और कही न कही वर्तमान टिका हुआ है.
आइये के स्वस्थ और सफल लोकतंत्र की कल्पना करते हैं जिसे हमने बड़ी कुर्बानियो के बाद पाया है.
जय हिन्द 

Thursday, April 12, 2018

मै एक Candle हूँ

मै एक Candle हूँ जो हर रोज जल रहा हूँ कभी महिलाओं की सुरक्षा के लिये , कभी छोटे छोटे मासूम बच्चो की सुरक्षा के लिए , कभी भ्रष्टाचार मुक्त समाज के लिये तो कभी परिवर्तन, सामाजिक सुरक्षा और अधिकार के लिए.... पक्ष और कभी विपक्ष दोनों के लिए भी जल रहा हूँ मैं।
मेरे जलने और जलते रहने का गवाह है India Gate और वो तथाकथित भीड़ जो बस खुद को किसी भी समय तैयार रखती है किसी के भी साथ हो लेने के लिए।
मुझे बस इंतज़ार है उस परिवर्तन का जिसके लिए मैं जल रहा हूँ.
क्या मेरा जलना महज एक औपचारिकता मात्र ही तो नहीं रह गया है.... ???
सोचता हूँ की कभी न कभी मेरी जलन कुछ तो परिवर्तन ला पाने में सक्षम होगी बस इसी उम्मीद से जल रहा हूँ मैं !

Monday, July 16, 2012

राजनैतिक असंवेदनशीलता

राजनैतिक संवेदनशीलता बेमानी होती जा रही है और यह एक ऐसा शब्द है जो हमारे राजनीतिज्ञों के शब्द कोष से गायब है..
असम और झारखण्ड की ह्रदय विदारक और दिल दहला देने वाली यह घटना हमारे सभ्य समाज का विद्रूप चेहरा उजागर कर रही है. अब रहा महिला आयोग का प्रश्न तो यह अशंतुष्ट कार्यकर्ता और उनके परिजनों को संतुष्ट करने के लिए बनाया गया और Government द्वारा लिया गया एक प्रगतिशील कदम है जिसका Politically glamorization हो गया है और इसके बारे में कुछ कहने की कोई आवयश्कता नहीं है क्योंकि आप सभी समझ सकते हैं की मै कहना क्या चाहता हूँ.
सबसे बड़ी बात तो यह है की क्या है कोई ऐसा आयोग या कानून जो सुश्री मुखर्जी और असम के पीड़ित को न्याय दिला सके ....यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसके लिए मुझे नहीं लगता है हमारे रहनुमाओ के पास कोई भी उत्तर हो

Friday, April 6, 2012

काश हम समझ पाते...

आज हर जगह एक ही चर्चा हो रही है ...विडम्बना तो यह है की वो हमारे उस नस के विषय में बताने की बातें है जो कही न कही हमारे अश्मिता से जुडी हैं. मै ऐसा नहीं कहता की ये नहीं होनी चाहिए,यह आवश्यक भी है किन्तु बचपन से सुनता आ रहा हूँ की अपनी समाश्या अपने घर में मिल बैठ कर सुलझा लेना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए..ऐसा न हो की सुलगती आग में कही बहार का ऐसा हवा का झोका आये जो हमारी सारे सम्भावनाओ को ही समाप्त कर दे.
सारे समाचार पत्र, पत्रिका, यहाँ तक की न्यूज चैनल भी रक्षा से जूरी तमाम खुलाशे कर रहे हैं .क्या यह तर्क सांगत लगरहा है आपको ...कल रात मै इसी तरह तमाम न्यूज चैनलस को देख रहा था ..सुनने में तो काफी दिलचस्प बातें बताई जा रही थी जो शायद आम आदमी के जानकारी से परे थी पर एक अनदेखा डर भी पीछा करता नजर आया की क्या कोई इसका फायदा तो नहीं उठा सकता है.....हम अक्सर ही अपनी प्राथमिकताओ को भूल कर दुसरे की गलतियों को ऊपर दिखाने की चेष्टा करते रहते हैं...ऐसा क्यों शायद यह बताने की जरुरत नहीं है....
बेशक हमारे यहाँ हर तरफ भ्रष्टाचार का बोल बाला हो गया है किन्तु हमे मिलबैठ कर इसका निदान ढूँढना चाहिए और रही आम आदमी को बताने की बात तो ऐसा प्रबंध होना चाहिय की कुछ खबर केवल और केवल देश के सीमा के भीतर ही प्रसारित हो ...ऐसा हो सकता है की हमारे सुजाव से कुछ खाश वर्ग सहमत न हो लेकिन यह मेरा व्यक्तिगत सोच है .

Sunday, June 19, 2011

बापू आज होते तो वो भी सत्याग्रह करने से डरते

लोकपाल , अन्ना साहब और बाबा से पटे परे खबरों से अब जी उब गया है ...कही से यह पता नहीं चलता की मीडिया लोकपाल और कला धन के पक्ष में है या विपक्ष या हो सकता है मै अभी पक्ष या विपक्ष को विश्लेषण करने के स्थिति में न पाऊं और उतनी मेरी पहुच भी न हो.
हो कुछ भी मगर सरकार लोकपाल और काला धन के मुद्दे पर पीछे क्यों हट रही है मेरे समझ से परे है. अगर आप किसी तरह किसी भी प्रकार के भर्ष्टाचार में लिप्त नहीं हैं तो फिर इस तरह के क़ानून से डरने की क्या जरूरत .
मै यह अपने आँखों देखि बात बता रहा हूँ की एक आदमी जिसके पास सुबह का खाना हो तो रात के लिए सोचने की नौबत थी २ बार विधायक होने के बाद आज वह २०० कड़ोर की सम्पति से अधिक का स्वामी है और अराजक भी
तो क्या इनको बचने के लिए सरकार लोकपल के विरोध में है.
चाहे जो भी आम आदमी हमेशा अपने २ समय की रोटी और इज्ज़त के लिए परेशान रहा है और आजकल के कुछ घटनाओ पर जब नजर परता है तो आम जन इससे भी वंचित नजर आते है . तब जेहन में यह बात उभरता है की क्या इनके लिए कोई न्याय प्रणाली नहीं है. आज जरुरत है किसी ऐसे कानून की जो आम आदमी को २ समय का भोजन दिला सके, क्या है कोई ऐसा कानून !!!!
आज जब बाबा केसत्यग्रह के रात की बातें सामने आती है तो डर लगता है की वह कौन सी जरूरत आ पारी थी की रात में ही रामलीला मैदान खली करना जरुरी हो गया था हमारे दिल्ली प्रशाशन के लिये, बाबा को तो प्रशाशन हरिद्वार पंहुचा दी लेकिन जरा उस महिला को देखिये जो आज तक अपने मौत से लड़ रही है क्या है कोई कानून जो उसे वापस उस स्थिति में ला दे.
गौर करने वाली बात यह है की बापू के जिस सत्याग्रह से हमें आजादी मिली हमारी सरकार ही उस तरह के सत्याग्रह के दमन करने जैसा कुकृत्य किया है ...क्या इन्हें शर्म भी नहीं आया ऐसा करने में ????
चाहे जो भी हो मै मानता हूँ की कला धन वापस आये या न आये मगर हम आम जनता के पास जो मौलिक अधिकार है उसका कम से कम हनन न हो .....

Saturday, January 8, 2011

उदयपुर में लगेगा युवाओं का मेला

उदयपुर आगामी 12 से 16 जनवरी तक उत्सवमय रहेगा. देश भर से युवा आके यहां युवा उत्सव में जुटेंगे. यह युवा उत्सव स्वामी विवेकानन्द के स्मृति में आयोजित किया जाता है. इसके माध्यम से युवाओं में विवेकानन्द के जीवन और विचारों के साथ साथ राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक समन्वय की भावना का प्रसार किया जाता है. गौरतलब है कि विवेकानन्द भारत के एक युवा चिंतक थे और उनका मानना था कि युवाओं का जागरुक रहना देश कि लिये बहुत ही आवश्यक है.

उत्सव का उद्घाटन 12 जनवरी को एम.बी. स्टेडियम में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के हाथों होगा. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, केन्द्रीय मंत्री एम.एस.गिल., वरिष्ठ नेता शिवराज पाटील मुख्य अतिथि रहेंगे. कार्यक्रम का उद्घाटन आतिशबाजी और लेज़र शो के साथ किया जायेगा. इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा जो आगामी १६ तक चलेगा. सांस्कृतिक कार्यक्रम में देश भर से आये युवा कलाकार शिरकत करेंगे और अपनी कला का जौहर दिखायेंगे. इन कार्यक्रमों में शास्त्रीय नृत्य, शास्त्रीय गायन, नाटक, के साथ लोक कलाओं का भी प्रदर्शन होगा. इसके अतिरिक्त पेंटिंग, फ़ोटोग्राफी और शिल्प की प्रतिस्पर्धा आयोजित की जायेगी. कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा खेल व युवा मंत्री एम.एस. गिल करेंगे.

युवाउत्सव का आयोजन केन्द्रीय युवा मंत्रालय के युवा विभाग द्वारा किया जाता है. इस सोलहवें आयोजन में राजस्थान सरकारा का युवा मंत्रालय इस का मेजबान बना है. माननीय मुख्यमंत्री इस आयोजन के मुख्य संरक्षक हैं. इस युवा उत्सव की राष्ट्रीय सेवा योजना और नेहरु युवा केन्द्र के साथ सहभागीता हैं.

उदयपुर इस आयोजन के लिये तैयार हो गया है. विभिन्न आयोजन केन्द्र तैयार हो गये हैं. इस आयोजन के लोगों को विविध रंगों से बनाया गया है जिसमें अंग्रेजि के N,Y,F अक्षर दिखते हैं. टिंगर इसका शुभंकर है और इस उत्सव का नारा हैसबसे पहले भारत’.