पिछले कई वर्षो, कई दिनों से बार बार एक सवाल सामने आ रहा है..... आखिर ये है क्या?
और क्यों ये हमें इतना विचलित कर रखा है ?
क्या ऐसा पहली बार हुआ है?
क्या इसके पहले सब कुछ ठीक था?
इन सब सवालो ने कहीं न कहीं हम मध्यम वर्ग को ज्यादा प्रभावित किया है.. आखिर ऐसा क्यों?
ऐसा क्यों होता है की हमारे आस पास चल रहे किसी भी अव्यवस्था से हम सहज ही प्रभावित हो जाते हैं.... और इतना प्रभावित की हम खुद को खत्म कर उस चल रहे अव्यवस्था के लिए एक ऊर्जा देते जाते हैं .
हमारा सोचना बिलकुल गलत नहीं है...गलत है की हम किसी से भी कुछ ज्यादा आशन्वित होते हैं और खुद की अपेक्षा बढ़ाये रखते हैं जिसके पूरा न हो पाने का दंड भी खुद को ही देते चले जाते हैं...जो बिलकुल तर्कहीन और गलत है
हमारा सबसे बड़ा दोस्त हमारा आत्मविश्वास होता है, क्यों नहीं हम इसे मजबूत करने का प्रयास करते हैं.... यहाँ सायद मई गलत हो सकता हु लेकिन क्या हमारे पास कोई और भी विकल्प है क्या?
जिस भाई भतीजावाद की बात चल रही है उससे तो ऐसा कोई सेक्टर नहीं जो प्रभावित नहीं... तब क्या हमें अपने लड़ाई, आत्मविश्वास को छोड़ अंतिम यात्रा को निकल चलना चाहिए... बिलकुल नहीं... मैं सहमत नहीं... हमें तो अपना रास्ता खुद बनाना है...काम से काम ये तो होगा की हमने खुद के लिए प्रयास तो किया... आत्मसंतुष्टि तो होगी.
हम बॉलीवुड की ही क्यूँ...किसी और की क्यूँ न बात करे... आज जहां से मैं देखता हूँ वहां से भाई भतीजावाद से प्रभावित अगर कोई है तो वह है हमारी राजनीति, न्यायपालिका, मीडिया, ब्यूरोक्रेसी आदि
और यह ऐसी व्यवस्था बन गई है जिसके साथ ही जीने को हम अभिशप्त हैं, हम जानते हैं की हम न इसके खिलाफ लड़ सकते हैं और न इससे पार पा सकते हैं, तो बेहतर यह होगा की हम इसे एक चैलेंज के रूप में ले और अपने लिए खुद रस्ता बनाये जो हमें हमारी मंजिल तक पहुँचायेगा।
हम माध्यम वर्ग _ जो बहुत ही कर्मशील है _ जिसे ये पता है की वो हर परिस्थिति से लड़कर पार प् सकता है क्यों न अपनी लड़ाई खुद लड़े और ये याद रखे की वो कौन है_कहाँ से आया है_उसे कहाँ जाना है.
शायद यही एक रास्ता है जो हमे अख्तियार करना होगा मंजिल पर पहुंचने के लिए अन्यथा फिर हम किसी अव्यवस्था का शिकार होने के लिए खुद को प्रस्तुत कर रहे होंगे...