Monday, December 6, 2010

जीने की राह

कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन शब्द और समय दोनों का नितांत ही अभाव रहता है.आज तक यह समझ में नहीं आया कि कर्म और भाग्य में कौन अधिक महत्वपूर्ण है और किसकी ज्यादा अहमियत है. दिल आज भी कर्म को प्राथमिकता देता है और रोज रोज की घटनायें भाग्य के विषय में सोचने को मजबूर कर देती हैं.अभी तक मैंने कर्म ही किया और किसी सहारे की कभी जरुरत नहीं महसुस हुई लेकिन जब पीछे लौट कर देखता हूँ तो सोचता हूँ कि काश.....
हमेशा उन दोस्तों से घिरा रहा जो कभी भला नहीं सोचते थे वैसे मैं शुरु से दोस्ती में कोई विश्वास नहीं रखता था लेकिन समाजिक प्राणी होना भी एक चाहत थी. उनलोगों का सदा अपने लिए बुरा सोचना एक एहसास दे गया कि शायद यही समाज है जहां हमेशा लोगो को पीछे खींचने और नीचा दिखाने को ही प्राथमिकता दी जाती है और यह धरना शायद अब तक बनी हुई है.
आज मैं इन सब से पीछ छुड़ा कर मीडिया में कार्यरत हूँ तो दिखता है कि भाग्य की प्राथमिकता यहाँ भी जस की तस बनी हुई है. चाहे आप कितने बडे तीस मार खान ही क्यों हो अगर गाडफ़ादर रूपी भाग्य आपके साथ नहीं तो कुछ होना उतना ही मुश्किल है जितना की पत्थर पर घास उगाना वैसे असम्भव सा कुछ नहीं है, लेकिन यहाँ का शार्ट-कट तरीका कभी कभी अपने आप को भी उसी रूप में ढलने को बेबस करने को उतारू करती रहती है जैसा की आज कल होता है सुनता हूँ और देखने में भी कभी कभी ही जाता है.
ऐसे ऐसे लोग यहाँ ऊंची जगह पर बैठे हैं जिन्हें करना क्या है शायद यह मालूम नहीं और कार्यप्रणाली वही जस की तस कुछ नया नहीं...अगर किसी ने प्रयास किया भी तो उसे इतनी स्वतंत्रता नहीं मिलती जितनी की जरुरत होती है.
सब कुछ साथ नहीं होता इतना शायद मुझे मालूम है किन्तु इतना सुना था की मेहनत का फल मिलता जरुर है किन्तु इतनी प्रतीक्षा...शायद संभव नहीं
मैं अपनी ही बात नहीं कह रहा हूँ मैं शायद अपने सबसे करीब उनकी भी बात कहना चाहता हूँ
जब मैं इस मीडिया मार्केटिंग के फिल्ड में आया, वैसे तो मुझे अपने डोमेन की पूर्ण जानकारी तो नहीं लेकिन इसको जानने की इच्क्षा शक्ति रखने वाला विद्यार्थी हुआ करता था और उनका सदा सहयोग और परामर्श मिलता रहा और आज जिस जगह पर खडा हूँ वहां से उनके सहयोग के लिए थैन्क्स कहना काफी नहीं होगा.
उनसे सदा यही नसीहत मिली की यह एक अथाह सागर है और तुम को काफी कुछ जानना है-किन्तु आज यह सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ की इस सागर को लांघने वाले उस शक्स का भी दायरा सीमित ही लगता है.
और यह हकीकत सामने जाता है की जानकारी के साथ उसका आडम्बर भी नितांत ही आवश्यक होता है.
शायद यही आडम्बर यहाँ भाग्य के रूप में सामने आता होगाअभी भी मैं पूरी तरह सहमत नहीं हूँ किन्तु सहमति से कुछ नजदीक जरुर हूँ.
कभी कभी जी कहता है कि इन सब से अपने को अलग कर लुं किन्तु सामाजिक प्राणी होने का कर्तव्य भी तो निभाना है. समझ में नहीं आता की वो कौन सी सीढी है जो मेहनत से मिलती है और जो मेहनत को ही प्राथमिकता देती है.
रोज रोज ऐसे ऐसे लोगो से मुलाकात होती है जो करना क्या चाहते हैं इसकी जानकारी तक उनको नहीं होती है और कुछ ऐसे भी मिलते हैं जिनसे बहुत कुछ सिखने को मिलता है लेकिन ऐसे लोगो की संख्या हमेशा कम होती है.
ये अक्सर सुनने को मिलता है की बहुत अच्छे जा रहे हो किन्तु ऐसी बातें अवसर मिलने के लिए काफी नहीं होती है शायद यही सच्चाई होती होगी, ये मालूम नहीं...और यहीं से भाग्य के विषय में सोचने को मजबूर करती हैं कभी कभी लगता है की भाग्य ही सब कुछ है और कभी कभी लगता है कि नहीं कर्म का फल मिलता होगा, लेकिन कब, पता नहीं .
ऐसा नहीं की ये बातें किसी हताशा का हिस्सा है हकीकत यह है की यह एक बहुत दिनों से दबी हुई सच्चाई है जिनको मैं आज शब्दों का रूप दे रहा हूँ. आज जहां मैं हूँ वहां से कई मील आगे होता अगर भाग्य ने मेरा साथ दिया होता और ऐसा बहुतो के साथ भी हुआ होगा ऐसा निश्चित है. दिल हमेशा आज भी कर्म को ही प्राथमिकता देता है और मैं भी इसी का साथ देने का सोच रखा है देखना यह है की आखिर जीतता कौन है?
कुछ दिन पहले की बात है की मुझे कही से एक अच्छा ऑफर मिला और यह मेरे लिए अच्छा हो सकता था लेकिन यहाँ मेरे कर्म पर मेरा भाग्य भारी पडा और सब होते हुए वह नहीं पहुँच सका जहां मुझे पहुचना चाहिए था.
आखिर इतनी बातें हैं और समय कम इसलिए आगे की बात अगले पोस्ट में करूँगा....
किसी भी तरह यह मेरा व्यक्तिगत विचार है और यह किसी को प्रेरित करने का कोई तरीका नहीं अतः आप सब अपने भाग्य की प्रबलता पर केन्द्रित हो सकते हैं किन्तु एक बडी आबादी हमारे साथ है जिसमे अदम्य उत्साह और कार्यशक्ति निहित होते हुए भी अवसर की तलाश है.
उन सबो से यह उम्मीद की आप आगे भी अपने कर्म को ही प्राथमिकता दे...
अवनीश .

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