Monday, July 16, 2012

राजनैतिक असंवेदनशीलता

राजनैतिक संवेदनशीलता बेमानी होती जा रही है और यह एक ऐसा शब्द है जो हमारे राजनीतिज्ञों के शब्द कोष से गायब है..
असम और झारखण्ड की ह्रदय विदारक और दिल दहला देने वाली यह घटना हमारे सभ्य समाज का विद्रूप चेहरा उजागर कर रही है. अब रहा महिला आयोग का प्रश्न तो यह अशंतुष्ट कार्यकर्ता और उनके परिजनों को संतुष्ट करने के लिए बनाया गया और Government द्वारा लिया गया एक प्रगतिशील कदम है जिसका Politically glamorization हो गया है और इसके बारे में कुछ कहने की कोई आवयश्कता नहीं है क्योंकि आप सभी समझ सकते हैं की मै कहना क्या चाहता हूँ.
सबसे बड़ी बात तो यह है की क्या है कोई ऐसा आयोग या कानून जो सुश्री मुखर्जी और असम के पीड़ित को न्याय दिला सके ....यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसके लिए मुझे नहीं लगता है हमारे रहनुमाओ के पास कोई भी उत्तर हो

Friday, April 6, 2012

काश हम समझ पाते...

आज हर जगह एक ही चर्चा हो रही है ...विडम्बना तो यह है की वो हमारे उस नस के विषय में बताने की बातें है जो कही न कही हमारे अश्मिता से जुडी हैं. मै ऐसा नहीं कहता की ये नहीं होनी चाहिए,यह आवश्यक भी है किन्तु बचपन से सुनता आ रहा हूँ की अपनी समाश्या अपने घर में मिल बैठ कर सुलझा लेना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए..ऐसा न हो की सुलगती आग में कही बहार का ऐसा हवा का झोका आये जो हमारी सारे सम्भावनाओ को ही समाप्त कर दे.
सारे समाचार पत्र, पत्रिका, यहाँ तक की न्यूज चैनल भी रक्षा से जूरी तमाम खुलाशे कर रहे हैं .क्या यह तर्क सांगत लगरहा है आपको ...कल रात मै इसी तरह तमाम न्यूज चैनलस को देख रहा था ..सुनने में तो काफी दिलचस्प बातें बताई जा रही थी जो शायद आम आदमी के जानकारी से परे थी पर एक अनदेखा डर भी पीछा करता नजर आया की क्या कोई इसका फायदा तो नहीं उठा सकता है.....हम अक्सर ही अपनी प्राथमिकताओ को भूल कर दुसरे की गलतियों को ऊपर दिखाने की चेष्टा करते रहते हैं...ऐसा क्यों शायद यह बताने की जरुरत नहीं है....
बेशक हमारे यहाँ हर तरफ भ्रष्टाचार का बोल बाला हो गया है किन्तु हमे मिलबैठ कर इसका निदान ढूँढना चाहिए और रही आम आदमी को बताने की बात तो ऐसा प्रबंध होना चाहिय की कुछ खबर केवल और केवल देश के सीमा के भीतर ही प्रसारित हो ...ऐसा हो सकता है की हमारे सुजाव से कुछ खाश वर्ग सहमत न हो लेकिन यह मेरा व्यक्तिगत सोच है .